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स्वयं सहायता समूह: महिला सशक्तिकरण का एक प्रमुख माध्यम - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी

चर्चा का कारण

हाल ही में भारत सरकार ने बजट 2019-20 में स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को बढ़ावा देने तथा देश की विकास प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए स्वयं सहायता समूह को दिए जाने वाले ब्याज सब्सिडी कार्यक्रमों का सभी जिलों में विस्तार करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही जनधन बैंक खाते वाले स्वयं सहायता समूह की प्रत्येक महिला एसएचजी सदस्य को 5000 रुपये तक की ओवरड्राफ्रट की सुविधा भी दी जाएगी।

परिचय

बांग्लादेश में 1970 के दशक के दौरान गरीब और समाज के निम्न तबके के लोगों के जीवन में आर्थिक समस्याओं के समाधान हेतु ‘स्वयं सहायता समूह’ की अवधारणा को ‘बांग्लादेश ग्रामीण बैंक’ के रूप में जीवंत रूप प्रदान करने वाले नोबल पुरस्कार विजेता प्रो. मोहम्मद यूनुस का योगदान अविस्मरणीय है। आज भी ‘स्वयं सहायता समूह’ बहुत प्रासंगिक है। इन समूहों के माध्यम से सभी सदस्य अपनी सामूहिक बचत निधि से जरूरतमंद सदस्य को न्यूनतम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करते हैं जिससे वह सदस्य स्थानीय आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से आजीविका उपार्जन हेतु अपनी उद्यमशीलता को आकार प्रदान करता है।
विकासशील देशों के लिए स्वयं सहायता समूह जमीनी-स्तर पर जनसामान्य के आर्थिक सशक्तिकरण का एक प्रमुख माध्यम है। वहीं दूसरी ओर इस अवधारणा को न केवल सामान्य लोगों द्वारा अपनाया जाता है बल्कि दुनिया भर की सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाएँ भी स्वयं सहायता समूह के महत्त्व को बखूबी समझती हैं।
भारत में आर्थिक उदारीकरण (1991-92) के दौरान स्वयं सहायता समूहों को विशेष प्रोत्साहन दिया गया तथा इस प्रक्रिया में नाबार्ड की भूमिका प्रमुख रही। वहीं भारत की नौंवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) के दौरान स्वयं सहायता समूहों को जमीनी-स्तर पर विकासात्मक योजनाओं के कार्यान्वयन में उपयोग में लाया गया।

स्वयं सहायता समूह का लक्ष्य

  • गरीब लोगों के बीच नेतृत्व क्षमता का विकास करना।
  • स्कूली शिक्षा में योगदान करना।
  • पोषण में सुधार करना।
  • जन्म दर में नियंत्रण करना।
कई स्वयं सहायता समूह नाबार्ड की सेल्फ हेल्प ग्रुप्स बैंक लिंकेज (Self Help Groups Bank Linkage) कार्यक्रम की तरह बैंकों से उधार लेते हैं, इस मॉडल ने सेवाओं को गरीब जनसंख्या तक पहुँचाने का कार्य किया है।
नाबार्ड का अनुमान है कि भारत में 2.2 मिलियन स्वयं सहायता समूह है, जो 33 मिलियन सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सेल्फ हेल्प ग्रुप्स बैंक लिंकेज कार्यक्रम कुछ राज्य में भी शुरू किया गया है, जैसे- आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक।

स्वयं सहायता समूहों का ग्रामीण भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान

  • सामाजिक उद्यमिता को प्रोत्साहन देने में सहायक।
  • लोगों में उद्यमशीलता, प्रबंधकीय गुणों जैसे नेतृत्व व निर्णय लेने की क्षमता इत्यादि का विकास।
  • आर्थिक गतिविधियों द्वारा मूल्यवर्द्धक वस्तुओं का उत्पादन।
  • नवाचार एवं रचनात्मक उद्योगों (क्रिएटिव इंडस्ट्रीज) को प्रोत्साहन।
  • रोजगार, स्वरोजगार व उद्यमिता से गरीबी उन्मूलन में सहायक।
  • विभिन्न संसाधनों (मानव, वित्तीय, प्राकृतिक एवं अन्य) के समुचित उपयोग से स्थानीय माँगों के अनुरूप वस्तुओं/सेवाओं के उत्पादन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करना।
  • महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा उत्पादित विभिन्न खाद्य पदार्थों जैसे अचार, पापड़, बड़ी, दलिया, आटा, अगरबत्ती, मुरब्बा इत्यादि की सुगम उपलब्धता से महिलाओं व बच्चों के पोषण तथा विकास में महत्वपूर्ण योगदान।
  • ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में होने वाले पलायन को रोकने में सहायक।
  • स्वैच्छिक बचत और वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहन।
  • श्रम-आधारित नए रोजगार सृजन करने वाले क्षेत्रों को बढ़ावा।
  • क्षेत्रीय आर्थिक व सामाजिक असमानता को कम करने में सहायक।
भारत के विभिन्न राज्यों जैसे- छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना इत्यादि में महिला स्वयं सहायता समूह विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।

लाभ

  • विगत कुछ वर्षों में देखा जाए तो इसमें महिलाएँ बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं जिससे समाज में उनकी स्थिति में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है।
  • स्वयं सहायता समूहों के सदस्य अपने नियमित बचत से एक कोष बना लेते हैं और उस कोष का उपयोग आपातकालीन स्थिति में अपने सामूहिक उद्देश्य के कार्य हेतु करते हैं।
  • स्वयं सहायता समूह अपने कोष के पैसे से ग्रामीण आधारित सूक्ष्म या लघु उद्योग की शुरूआत भी करते हैं जिससे रोजगार के नये अवसर सृजित होते हैं।
  • इन समूहों में से ही किसी को नेतृत्व दे दिया जाता है जो सारे प्रबंधन का कार्य करता है।
  • इन समूहों को बैंकों द्वारा धन दिया जाता है, जिससे वित्तीय लेन-देन में आसानी होती है।
  • स्वयं सहायता समूहों के निर्माण होने से दूसरे संस्थानों पर वित्तीय निर्भरता कम हो जाती है।

चुनौतियाँ

  • ज्ञान की कमीः ग्रामीण स्तर पर देखें तो लोगों में इसके प्रति जागरूकता की कमी है क्योंकि स्वयं सहायता समूहों में काम करने वाले लोग अधिकतर अशिक्षित होते हैं।
  • बैंकिंग सुविधाओं का अभावः भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं की अगर बात करें तो 6 लाख गाँव में केवल 1.2 लाख बैंकिंग शाखाएँ हैं जो कि औसत से भी कम है। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक स्वयं सहायता समूहों को वित्तीय सेवाएँ जल्दी प्रदान करने को तैयार नहीं होते हैं।
  • भारत में खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पितृसत्तात्मक मानसिकता का होना, जो कि स्वयं सहायता समूहों में महिलाओं की भागीदारी को हतोत्साहित करते हैं।
  • स्थायित्व तथा सुरक्षाः स्वयं सहायता समूहों के स्थायित्व और उनकी गुणवत्ता का विषय हमेशा से मुख्य मुद्दा रहा है साथ ही इनकी सुरक्षा का दायित्व कौन ले इस पर समूहों के सदस्यों के पास कोई जवाब नहीं है।
  • स्वयं सहायता समूह केवल सूक्ष्म वित्त और सूक्ष्म उद्यमिता को बढ़ाने में सक्षम है जो उनके आर्थिक संसाधनों को सीमित करते हैं।
  • स्वयं सहायता समूह के कार्य आज भी प्राथमिक क्षेत्र से संबंधित हैं जो इनके निम्न कौशल को दर्शाते हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में योग्य लोगों की कमी है। योग्यता की कमी होने के कारण इन स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को प्रशिक्षण ठीक से नहीं मिल पाता, इसके अलावा क्षमता निर्माण और कौशल प्रशिक्षण के लिए संस्थागत तंत्र का अभाव है।
  • स्वयं सहायता समूह, गैर सरकारी संस्थाओं और सरकारी एजेंसियों पर बहुत अधिक निर्भर है, जैसे ही इन संस्थाओं द्वारा अपना समर्थन वापस लिया जाता है वैसे ही इनका पतन हो जाता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की कमी होने के कारण, स्वयं सहायता समूहों के द्वारा तैयार माल को बाजार तक पहुँचाने में कठिनाई होती है।

सरकारी प्रयास

वित्तमंत्री ने अपने बजट 2019-20 में महिलाओं के लिए ‘नारी तू नारायणी/महिला’ के लिए कई घोषणाएँ की हैं, जिसे निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
  • महिला नेतृत्व पहलों और आन्दोलनों के लिए महिला केन्द्रित नीति निर्माण के दृष्टिकोण में बदलाव।
  • बजट 2019-20 में लैंगिक भेदभाव को दूर करने के लिए सरकारी और निजी हित धारकों के साथ एक समिति प्रस्तावित की गयी है।
  • महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के साथ ही मुद्रा योजना के तहत महिलाओं को सस्ता लोन देने का ऐलान किया गया है। महिला उद्यमियों को अब एक लाऽ रुपये तक का लोन दिया जाएगा।
  • साथ ही जन धन खाते वाले प्रत्येक सत्यापित महिला एसएचजी (सेल्फ हेल्प ग्रुप) सदस्य को 5000 रुपये के ओवरड्राफ्रट की अनुमति दी गई है।
  • इसके अतिरिक्त स्टैंड अप इंडिया स्कीम के तहत महिलाओं, SC/ST उद्यमियों को लाभ दिये जाने का प्रावधान किया गया है।
दीनदयाल अंत्योदय योजनाः राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन डीएवाई-एनआरएलएम गरीब ग्रामीण महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रहा है। यह मिशन भारत सरकार की ग्रामीण गरीबी दूर करने की प्रमुख योजना है। 2011 में स्थापित इस मिशन का मार्च 2018 तक 29 राज्यों और 5 संघशासित प्रदेशों के 584 जिलों के 4456 ब्लॉकों में प्रसार हो चुका है। यह मिशन ग्रामीण महिलाओं को कृषि एवं गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों में आजीविका अपनाने में मदद कर रहा है। मिशन के तहत स्टार्ट अप ग्रामीण उद्यमिता कार्यक्रम (एसवीईपी), आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना (एजीईवाई) जैसी उपयोजनाओं के सफल कार्यान्वयन से ग्रामीण महिलाओं की उद्यमिता क्षमता सामने आई है।
दीनदयाल अंत्योदय राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) के अंतर्गत महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए बैंक ऋण पर बल दिया जा रहा है ताकि उद्यम को बढ़ावा मिले। बैंकों द्वारा प्राप्त ऋण के माध्यम से कस्टम हायरिंग सेंटर, ग्रामीण परिवहन, कृषि तथा संबंधित कार्य, पशुपालन, बागवानी, हथकरघा तथा हस्तशिल्प, खुदरा व्यापार आदि जैसे उपयोगी उद्यमों को बढ़ावा देने में किया जा रहा है। पिछले 5 वर्ष में महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए बैंक संपर्क दो गुना से अधिक हो गया है।

कौशल विकास से बढ़े रोजगार के अवसर

कौशल विकास के तहत अब तक 56 लाख से ज्यादा युवा प्रशिक्षित किए जा चुके हैं जिनमें से करीब 24 लाख अपने हुनर से जुड़े क्षेत्र में रोजगार पा चुके हैं। दरअसल देश में पहली बार भारत सरकार ने स्किल डेवलपमेंट को लेकर एक समग्र और राष्ट्रीय नीति तैयार की। इसके लिए 21 मंत्रालयों और 50 विभागों में फैले कौशल विकास के कार्य को विशेष तौर पर गठित हुए कौशल विकास मंत्रलय के अधीन लाया गया है। 12,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ शुरू हुई उद्यमिता और कौशल विकास पहलों के संस्थानीकरण के प्रयास के रूप में नाबार्ड विशिष्ट संस्थाओं को सहायता प्रदान करता है, जो विभिन्न कौशलों पर आधारित ग्रामीण युवकों और महिलाओं को उद्यमिता विकास और प्रशिक्षण प्रदान करते हैं जिससे उन्हें आजीविका के लिए बेहतर विकल्प प्राप्त होते हैं।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना से युवाओं को उद्योग से संबंधित दक्षता का प्रशिक्षण और अपनी रोजगारपरकता में सुधार करने का मौका मिल रहा है। युवा वर्ग श्रम बाजार में प्रतिस्पर्द्धा के लिए तैयार हो सके, इसके लिए सरकार ने विभिन्न प्रकार के दक्षता कार्यक्रम उपलब्ध कराए हैं, जैसे दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, राष्ट्रीय शहरी जीविकोपार्जन मिशन और राष्ट्रीय ग्रामीण जीविकोपार्जन मिशन इत्यादि।

मुद्रा योजना से बढ़े स्वरोजगार के अवसर

मुद्रा योजना के तहत अगस्त 2018 तक 8.19 करोड़ लोगों ने ऋण लिया है। यदि कम से कम एक व्यक्ति को रोजगार मिलने का भी औसत मान लिया जाए तो 8-19 करोड़ लोगों को रोजगार मिला है। इस योजना के तहत अब तक 3.24 लाख करोड़ रुपये वितरित किए जा चुके हैं जिनमें ज्यादातर लघु उद्यमी हैं। इनमें से बड़ी संख्या उन लोगों की है जो इससे पहले किसी भी प्रकार के व्यवसाय से नहीं जुड़े थे। मुद्रा ऋण 10 लाख रुपये तक के गैर-कृषि कार्यकलापों के लिए उपलब्ध है।
मुद्रा योजना महिला सशक्तिकरण का भी एक बेहतरीन उदाहरण है। इस योजना के तहत 30 अगस्त 2018 तक 86,37,823 लोग लाभ ले चुके हैं, इनमें 70 प्रतिशत महिलाएँ हैं यानी लगभग छह करोड़ से अधिक महिलाओं ने इसका लाभ उठाया है।

स्टैंडअप इंडिया

इस योजना से देशभर में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत 10 लाख रुपये से 100 लाख रुपये तक की सीमा में ट्टणों के लिए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के बीच उद्यमशीलता को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। हर बैंक को कहा गया है कि वह यह सुनिश्चित करे कि दलित, पिछड़े और महिलाओं को खोज कर इस स्कीम से उन्हें जोड़ें। इन योजनाओं के माध्यम से सरकार ने कुटीर उद्योग को बेहतर बनाने की कोशिश की है। कुटीर उद्योग के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी बैंक या जिला उद्योग केन्द्र से भी संपर्क कर सकते हैं।

राष्ट्रीय ग्रामीण जीविकोपार्जन मिशन (एनआरएलएम)

इस कार्यक्रम में विश्व बैंक ने निवेश किया है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब वर्गों को दक्ष और प्रभावशाली संस्थागत मंच प्रदान करना और स्थायी जीविकोपार्जन में वृद्धि और वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता में सुधार करना है, लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि दक्षता विकास में सतत निवेश किया जाए और उद्यमशीलता के जरिए उत्कृष्ट रोजगार सृजन के अवसरों को बढ़ाया जाए। भारत में कौशल की कमी को दूर करने और रोजगारपरकता को बढ़ाने के लिए ऐसी नीतियाँ और रणनीतियाँ बनाई जानी चाहिए जो श्रम प्रासंगिक शिक्षा प्रणालियों, कैरियर मार्गदर्शन, जीवन कौशल और तकनीकी-व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण योजनाओं तथा औपचारिक एवं अनौपचारिक क्षेत्र में ‘ऑन द जॉब’ प्रशिक्षण पर केंद्रित हों।

निष्कर्ष

भारतीय अर्थव्यवस्था में दहाई की गति प्राप्त करना तथा निरंतरता बनाए रखना बहुत ही महत्त्वाकांक्षी प्रतीत होता है, आज के बदलते भारत में आवश्यकता है कि विभिन्न महत्वपूर्ण चुनौतियों, जैसे सभी राज्यों में संतुलित समान आर्थिक विकास, सामाजिक सद्भाव, आगामी पीढि़यों के मद्देनजर मानव-हित में पर्यावरणीय संरक्षण एवं संतुलन बनाते हुए 2030 तक समावेशी एवं सतत विकास के लक्ष्यों को समयबद्ध रूप से रणनीतिक तौर पर प्राप्त किया जाये। दूसरी ओर, निजी क्षेत्र, गैर-सरकारी संस्थाएँ एवं स्वयं सहायता समूह अपने एकीकृत प्रयास से ग्रामीण भारत की विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य समस्याओं का समाधान एवं प्रबंधन के बेहतर तरीके सहायक हो रहे हैं।
उपरोक्त सभी पहलुओं पर गौर करने और समझने के बाद यह कहा जा सकता है कि ग्रामीण भारत के सामजिक-आर्थिक विकास में गैर-सरकारी संस्थाओं, स्वयं सहायता समूहों एवं निजी क्षेत्र की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ये सभी संस्थाएँ अपनी विभिन्न सामाजिक गतिविधियों और कार्यों से नए भारत के निर्माण में तथा विभिन्न सामाजिक विषमताओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी, भेदभाव, भ्रष्टाचार एवं महिला एवं बाल उत्पीड़न इत्यादि को जन आंदोलन एवं भागीदारी से दूर करने में सरकार व समाज को अपना बहुमूल्य योगदान दे सकती हैं।

महिला स्वयं सहायता समूह और महिला सशक्तीकरण - 2020

महिला सशक्तीकरण से अभिप्राय जीवन के विविध क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा निर्णय प्रक्रिया में साझेदारी से है । इसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक इत्यादि सभी विषयों में महिलाओं की स्थिति मे परिवर्तन होता हैं । यह महिलाओं के स्वयं पर नियंत्रण, अपने परिवार के बारे में महत्वपूर्ण निर्णयों में साझेदारी तथा घर के इतर निर्णयों में भूमिका निर्धारित करता है । महिला सशक्तीकरण को राजनीति, प्रशासन, अर्थव्यवस्था, व्यापार-वाणिज्य इत्यादि में प्रतिनिधित्व के रूप में भी आंका जाता है । इसके तहत महिलाओं में सुरक्षा की भावना, मातृत्व मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर में कमी इत्यादि के रूप में भी देखा जाता है । सशक्तीकृत महिलाओं द्वारा अपनी क्षमता के दायरे में विश्वास का निर्माण शामिल होता है । महिलाओं को सशक्त करने में कुछ कारकों की अहम भूमिका होती है जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सैनिटेशन, आस्तियों पर स्वामित्व, कौशल, प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकीय ज्ञान इत्यादि जिन्हें नीचे दिए गए चित्र में दर्शाया गया है-


चित्र 5.1- महिला सशक्तीकरण के कारक
 women empowerment
स्वयं सहायता समूह और महिला सशक्तीकरण
भारत के गुजरात राज्य में सुश्री इला भट्ट के नेतृत्व में 1974 से महिलाओं द्वारा संगठित स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त प्रदान कर उन्हें उत्पादक गतिविधियों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है जो कि सूक्ष्म वित्त के क्षेत्र में सबसे पहला सफल प्रयास माना जाता है । बाद में, बांग्लादेश में श्री मुहम्मद यूनूस ने 1976 से सूक्ष्म वित्त को आधार बनाकर अनेक स्वयं सहायता समूहों का सृजन किया जिसने बांग्लादेश में गरीबी कम करने, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने एवं कई लघु एवं कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवन देने का कार्य किया जिसके लिए यूनूस को वर्ष 2005 में नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया जिसके बाद से स्वयं सहायता समूह एवं सूक्ष्म वित्त की अवधारणा एक व्यापक क्रांति के रूप में उभरते हुए विकासशील देशों में गरीबी निवारण एवं महिला उत्थान का अहम माध्यम बन चुकी है । इस प्रकार स्वयं सहायता समूहों द्वारा महिला सशक्तीकरण के पहलू को नीचे दिए गए चित्र से समझा जा सकता है-
चित्र 5.2- स्वयं सहायता समूहों द्वारा महिला सशक्तीकरण
स्वयं सहायता समूहों में महिला भागीदारी को प्रभावित करने वाले तत्व
  • भौगोलिक
  • सामाजिक-आर्थिक
  • संस्थागत
महिला भागीदारी का नतीजा
  • घरेलू आमदनी में बढ़ोतरी
  • खाद्य सुरक्षा
  • गरीबी निवारण

महिला भागीदारी
  • निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी
  • नियोजन व क्रियान्विति में भागीदारी

स्वयं सहायता समूहों द्वारा महिला सदस्यों को प्राथमिकता दिये जाने के कारण
हमारे देश में बहुत सारे गैर-सरकारी संगठन एवं सूक्ष्म वित्त संस्थाएं स्वयं सहायता समूहों के गठन व उन्हें ऋण देकर निर्धनता निवारण के उद्देश्य से कार्य करती है । ये समूह महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के अलावा उनमें समग्र जागरूकता के विकास में भी भूमिका निभा रहे हैं जिससे उनका सामाजिक, आर्थिक व वैयक्तिक सशक्तीकरण हो रहा है । यूँ तो, सूक्ष्म वित्त का उदात्त लक्ष्य गरीबी निवारण है किन्तु इसके महत्वपूर्ण सम्पूरक के रूप में महिला सशक्तीकरण का लक्ष्य भी पूरा हो रहा है । सूक्ष्म वित्त क्षेत्र में महिलाओं की सक्रिय उपस्थिति के निम्नलिखित कारण हैं-
  • किसी भी अर्थव्यवस्था में महिलाओं के योगदान पर प्रायः गौर नहीं किया जाता है जो भारतीय अर्थव्यवस्था में भी परिव्याप्त है । यही कारण है कि सूक्ष्म वित्त संस्थाएं महिलाओं को ऋण देने तथा उनके विकास पर बल देते हैं । इस प्रकार महिलाओं को ऋण देकर सूक्ष्म वित्त संस्थाएं महिला उद्यमों के सृजन, विकास व संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है । जिससे महिलाओं की स्वायत्तता, स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता, स्वरोजगार, आत्मविश्वास व सामाजिक ओहदे में वृद्धि हुई है ।
  • एक अनुमान के अनुसार दुनिया की गरीब जनसंख्या का 70 फीसदी हिस्सा महिलाएं हैं । स्पष्ट है कि गरीबी की मार पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर अधिक पड़ रही है । ऐसे में, सूक्ष्म वित्त संस्थाओं द्वारा निर्धनता निवारण के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विशेषकर महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहन दिया जाता है । क्योंकि एक पुरुष को गरीबी रेखा से बाहर निकालने का उसके परिवार पर भी असर हो यह निश्चित नहीं होता किन्तु महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण निश्चित ही पूरे परिवार विशेषकर बच्चों की ज़िन्दगी में व्यापक बदलाव लेकर आता है ।
  • भारत जैसे देशों में महिलाओं के सशक्तीकरण का पहलू अधिक जटिल है क्योंकि महिलाओं की उपस्थिति प्रायः अनौपचारिक क्षेत्र में ही है जहां न सिर्फ समान कार्य पर समान वेतन नहीं दिया जाता है बल्कि महिलाओं के यौन शोषण के मामले भी अधिक होते हैं ।
  • विकासशील देशों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में बेरोजगारी दर कहीं अधिक है ऐसे में सूक्ष्म वित्त संस्थाओं द्वारा महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ।
  • सरकार द्वारा भी महिलाओं को लक्षित वर्ग के रूप में प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि सामाजिक परिवर्तन में महिलाओं की कारगर भूमिका है ।
  • कई अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है कि महिलाओं की वित्तीय विश्वसनीयता पुरुषों से अधिक है क्योंकि महिलाएं पुरुषों की तुलना में ऋण राशि के इस्तेमाल में ज्यादा जिम्मेदार होती है । महिलाओं द्वारा सूक्ष्म वित्त संस्थाओं से लिए गए ऋण की भुगतान दर 95 फीसदी से भी अधिक है जो कि पुरुषों द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूहों की तुलना में कहीं अधिक सफल हैं । स्पष्ट है कि महिलाओं के समूह पुरुषों की तुलना में बेहतर ग्राहक हैं, वे संसाधनों की बेहतर प्रबंधक हैं, ऋण के लाभों को परिवारों के बीच फैला रही हैं ।

स्वयं सहायता समूहों का महिलाओं के जीवन पर प्रभाव
स्वयं सहायता समूहों में कार्य करने के कारण महिलाओं के आत्मविश्वास, स्वाभिमान, आत्म-गौरव इत्यादि में वृद्धि होती है क्योंकि घरेलू परिधि के बाहर एक समूह के रूप में छोटी-छोटी बचत इकट्ठी करके, ऋण लेकर, बैंक कर्मचारियों से संपर्क, लघु उद्यम स्थापित करके, समूह की बैठकों की कार्रवाई संचालित करके महिलाओं में निम्नलिखित क्षमताओं का विकास होता है:-
  • स्वनिर्णय की शक्ति- स्वयं सहायता समूह के सदस्य के रूप में काम करने के कारण महिलाओं की स्वयं निर्णय लेने की शक्ति का विकास होता है । महिलाओं द्वारा बैंकों के साथ लेन-देन, कागजी कार्रवाई इत्यादि करने से उनमें आत्म-विश्वास पनपता है । समूह की गतिविधियों के संचालन, बैठकों में भाग लेने से महिलाओं की स्वनिर्णय की क्षमताओं का विकास होता है जो धीरे-धीरे परिवार और समुदाय में उनकी सोच को आवाज मिलती है ।
  • जानकारी तथा संसाधनों की उपलब्धता समूह के सदस्य के रूप में महिलाओं की गतिशीलता बढ़ जाती है । घर की चारदीवारी में कैद रहने वाली महिलाएं इन समूहों के माध्यम से पंचायत संस्थाओं, बैंक, सरकारी तंत्र, गैर-सरकारी संगठनों, सूक्ष्म वित्त संस्थानों इत्यादि से संपर्क में आती है जिससे उनके पास अधिक सूचना एवं संसाधन होते हैं । सूचना एवं संसाधनों की उपलब्धता महिलाओं को सशक्त करती है ।
  • सामूहिक निर्णय के मामलों में अपनी बात बलपूर्वक रखने की समर्थता अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि स्वयं सहायता समूहों में कार्य करने वाली महिलाओं की सामुदायिक कार्यों में सहभागिता, पंचायत की बैठकों में उपस्थिति अधिक सक्रिय होती है । अन्य महिलाओं की अपेक्षा ये महिलाएँ अपनी बात समुदाय के सामने अधिक बलपूर्वक रख पाती है ।
  • आर्थिक आत्मनिर्भरता स्वयं सहायता समूह की सदस्य के रूप में महिलाएँ आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बनती है जिससे परिवार में उनकी स्थिति में सुधार होता है तथा इस प्रकार उपलब्ध धन का इस्तेमाल वे अपने निजी इस्तेमाल अथवा बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य इत्यादि में करती हैं । अध्ययनों से स्पष्ट है कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के मामले कम होते हैं ।
  • मनोवैज्ञानिक विकास स्वयं सहायता समूह की सदस्य के रूप में महिलाओं द्वारा स्वयं की पहल पर सामाजिक बदलावों के लिए भागीदारी सुनिश्चित होती है । उनका बदलाव लाने की अपनी क्षमता में विश्वास सुदृढ़ होता है ।
  • कौशल विकास- हमारे देश में प्रायः महिलाएं सिलाई, कढ़ाई, पापड़ बनाने, अचार बनाने जैसे कई कार्य करती हैं किन्तु इन्हीं कार्यों को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक आधार पर किया जाता है । इन समूहों को सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों द्वारा कौशल प्रशिक्षण भी दिया जाता है जिससे महिलाओं की स्वयं की व्यक्तिगत या सामूहिक शक्ति बेहतर करने के लिए कौशल सीखने की क्षमता का विकास होता है ।
  • लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास इन समूहों में सामान्यतया सभी सदस्य एक जैसी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के होते हैं तथा इनकी कार्रवाई में लोकतांत्रिक प्रविधियों को अपनाया जाता है जिससे महिलाओं का लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास मजबूत होता है । इसका प्रभाव गांव में राजनीतिक संस्थाओं यथा ग्राम सभा, पंचायत इत्यादि पर भी पड़ता है । महिलाओं की अन्यों की विचारधारा को लोकतांत्रिक तरीके से बदलने की क्षमता में अभिवृद्धि होती है ।
  • वित्तीय क्षेत्र में भागीदारी आज दुनिया भर में महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को गरीबी का मुकाबला करने में सबसे ज्यादा आशाजनक माना जा रहा है । भारत में 80 फीसदी से अधिक स्वयं सहायता समूह महिलाओं से संबद्ध हैं जिनमें भुगतान दर 95 फीसदी के आसपास है तथा गैर-निष्पादक परिसंपत्तियों का प्रतिशत बहुत कम है ।

महिलाओं की एसएचजी-बैंक लिंकेज योजना में स्थिति
नाबार्ड की भारत में सूक्ष्म वित्त की स्थिति 2011-12 रिपोर्ट के अनुसार मार्च 12 के अंत तक एसएचजी बैंक लिंकेज योजना के लगभग 79 प्रतिशत बचत खाते महिला एसएचजी द्वारा खोले गए थे । एसएचजी को बैंकों द्वारा दिए गए ऋण में लगभग 80 प्रतिशत ऋण महिला एसएचजी को दिए गए वहीं बैंकों द्वारा दिए बकाया ऋण में लगभग 84 फीसदी महिला एसएचजी द्वारा लिए गए । स्पष्ट है कि भारत में एसएचजी-बैंक लिंकेज योजना के तीन-चौथाई से अधिक लाभार्थी महिला एसएचजी हैं ।
तालिका 1- मार्च अंत में स्वयं सहायता समूहों की बचत एवं ऋण के मामले में स्थिति

2009-10
2010-11
2011-12
संख्या
(लाख में)
राशि
(करोड़ में)
संख्या
(लाख में)
राशि
(करोड़ में)
संख्या
(लाख में)
राशि
(करोड़ में)
एसएचजी द्वारा की गई बचत
69.53
6198.71
74.62
7016.30
79.60
6551.41
महिला एसएचजी की बचत
53.10
(76.4)
4498.66
(72.6)
60.98
(81.7)
5298.65
(75.5)
62.99
(79.1)
5104.33
(77.9)
बैंक द्वारा दिए गए ऋण
15.87
14,453.3
11.96
14547.73
11.98
16534.77
महिला एसएचजी को दिए ऋण
12.94
(81.6)
12429.37
(86.0)
10.97
(85.0)
12622.33
(86.8)
9.23
(80.4)
14132.02
(85.5)
बैंकों में बकाया ऋण
48.51
28038.28
47.87
31221.17
43.54
36340.00
महिला एसएचजी के बकाया ऋण
38.98
(80.3)
23030.36
(82.1)
39.84
(83.2)
26123.75
(83.7)
36.49
(83.8)
30465.28
(83.8)
नोट- कोष्ठक में दिए गए आंकड़े महिला एसएचजी का प्रतिशत दर्शाते हैं ।
स्त्रोत- नाबार्ड

महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों के विकास में बाधक तत्व
यद्यपि महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों द्वारा काफी अच्छा काम किया जा रहा है किन्तु भारतीय परिप्रेक्ष्य में महिलाओं को स्वयं को समूहों के रूप में संगठित होने व किसी उद्यम के विकास में पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है जैसे-
(क) महिलाओं की गतिशीलता पर सीमाएं भारत में पुरुष प्रधान समाज के कारण महिलाओं का जीवन प्रायः घर की चारदीवारी में ही सीमित होता है । इसलिए घर के बाहर जाकर स्वयं सहायता समूहों के रूप में संगठित होने की स्थिति में उन पर अनेक प्रकार की सामाजिक बाधाएं होती हैं । महिलाओं द्वारा समूहों के रूप में संगठित होने पर भी उन्हें अपने उद्यम को आगे बढ़ाने के लिए बैंकर्स, गैर-सरकारी संगठनों, अपने उत्पादों के लिए मध्यस्थों इत्यादि से बातचीत करनी होती है जिसमें कई बार परिजनों द्वारा सीमाएं डाली जाती हैं । इसी प्रकार पुरुष जहां देर रात तक काम कर सकते हैं महिलाओं के लिए कार्य करने की अवधि अनेक कारणों से सीमित होती है ।
(ख) सामाजिक प्रतिबंध भारतीय समाज में महिलाओं के रहन-सहन, काम-काज, रोजगार इत्यादि पर अनेक सामाजिक-पारम्परिक रीति-रिवाज भी बाधा के रूप में काम करते हैं । महिला स्वयं सहायता समूहों को स्वयं के उद्यम के उत्पादों का प्रचार करने व उनको शहरों तक पहुंचाने के लिए पुरुषों की सहायता लेनी पड़ती है । परिणामतः समूहों में कार्य करने के बावजूद महिलाएं स्वयं में पूर्ण विश्वास नहीं कर पाती हैं तथा पुरुषों पर निर्भरता को अपने जीवन का यथार्थ मानने लगती हैं । ऐसी स्थिति में सशक्तीकरण केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता का ही रूप ले पाता है और मनोवैज्ञानिक विकास नहीं हो पाता है ।
(ग) बैंकर्स का नकारात्मक रवैया परम्परागत रूप से बैंकों में पुरुष ग्राहक ही अधिक संख्या में होते हैं तथा महिलाएं एक तरह से बैंकिंग सेवाओं से वंचित रही हैं । स्वयं सहायता समूहों की सदस्य के रूप में जब महिलाएँ बैंकों से ऋण इत्यादि के लिए संपर्क करती हैं तो पूर्व अनुभव के अभाव में उनकी जिज्ञासाएं व शंकाएं अधिक होती हैं किन्तु बैंकर्स की तरफ से इस स्थिति के प्रति सकारात्मक व सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता है जिससे महिला समूहों का मनोबल कम होता है ।
(घ) प्रशासनिक बाधाएँ सरकारी संस्थाओं से संपर्क साधने में महिला समूहों को प्रशासनिक रूढ़िताओं, जटिलताओं, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, पुरुषवादी मानसिकता इत्यादि के कारण अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है । जिससे सरकार द्वारा स्वयं सहायता समूहों के लिए चलाई जा रही अनेक प्रोत्साहन योजनाओं का लाभ महिला समूह नहीं उठा पाते हैं अथवा उन्हें अनेक चुनौतियों से जूझना पड़ता है ।

सारांश
सार रूप में, हम कह सकते हैं कि स्वयं सहायता समूह महिलाओं के सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण योगदान कर रहे हैं क्योंकि इन समूहों में कार्य करने से उनके स्वाभिमान, गौरव व आत्मनिर्भरता में वृद्धि होती है । परिणामस्वरूप महिलाओं की क्षमताओं में बढ़ोतरी होती है । आज भारत दुनिया भर में महिलाओं द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूहों के क्षेत्र में सर्वोपरि स्थान रखता है किन्तु हमारे देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, प्रशासनिक, राजनीतिक व आर्थिक परिस्थितियां महिला समूहों की गतिशीलता, व्यवहार्यता व साध्यता में अनेक चुनौतियां खड़ी होती हैं । इन चुनौतियों को कम करने में महिला संगठनों, समाजसेवी संस्थाओं, गैर-सरकारी संगठनों, सरकारी एजेंसियों इत्यादि द्वारा कार्य किया जा रहा है । जिसके फलस्वरूप महिला समूहों की सक्रियता व सामाजिक-आर्थिक जीवन में भागीदारी व महिला सशक्तीकरण सच्चे मायनों में हो रहा है ।

डिटर्जेंट पाउडर बनाने का तरीका, रॉ मटेरियल लिस्ट !! Method of making detergent powder, raw material list in hindi

डिटर्जेंट पाउडर बनाने का व्यापार कैसे स्थापित करें | How to Start Detergent Powder Making Business Plan, Process in hindi

डिटर्जेंट पाउडर साफ़ सफाई के लिए बहुत ही आवश्यक वस्तु है. इसका प्रयोग साधारण तौर पर कपडे धोने के लिए किया जाता है. बाज़ार में विभिन्न तरह के ब्रांड ऐसे डिटर्जेंट बेच कर बहुत अच्छा लाभ कमा रहे हैं. बाजारों की दुकानों में कई ऐसे डिटर्जेंट हैं, जिनकी कीमत बहुत अधिक है. बड़ी बड़ी कम्पनियाँ अपने ब्रांड का डिटर्जेंट बहुत आसानी से बेच रही हैं. आप भी अपने ब्रांड का डिटर्जेंट बहुत ही सरलता से बना कर बाज़ार में बेच सकते हैं. इस व्यवसाय में आपको बहुत अच्छा मुनाफा प्राप्त होगा.

डिटर्जेंट पाउडर बनाने का व्यापार कैसे स्थापित करें

How to Start Detergent Powder Making Business in hindi

डिटर्जेंट पाउडर बनाने के लिए आवश्यक सामग्री (Detergent Powder Raw Material List)
डिटर्जेंट पाउडर बनाने के लिए कई तरह के आवश्यक रासायनिक सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है. यहाँ पर इसके लिए काम आने वाले आवश्यक रासायनिक सामग्री के विषय में दिया जा रहा है.
  • एसिड स्लरी
  • एओएस
  • डी कोल
  • CBX
  • ग्लौबर साल्ट
  • कलर साल्ट
  • सोडा ऐश
  • डोलोमाइट
  • ट्राईसोडियम फॉस्फेट
  • सोडियम ट्राई पोली फॉस्फेट
  • कार्बोक्ज़ी मिथाइल
  • परफ्यूम और ब्राईटनर
Detergent Washing Powder - Buy High Foam Washing Powder ...
डिटर्जेंट पाउडर बनाने के लिए आवश्यक सामग्री कहाँ से ख़रीदें (Detergent Powder Raw Material Suppliers and Cost)
डिटर्जेंट पाउडर बनाने के लिए मशीनरी (Detergent Powder Making Machine)
डिटर्जेंट बनाने के लिए तीन तरह के मशीन की आवश्यकता पड़ती है. इन तीन तरह के मशीनों मे मिक्सर मशीन, स्क्रेमिंग मशीन और सीलिंग मशीन है. इन तीनों के कार्य का वर्णन नीचे किया जा रहा है.
  • मिक्सर मशीन: यह ग्लौबर साल्ट, सोडा ऐश, रंग आदि को मिलाने के काम में आता है.
  • स्क्रेमिंग मशीन : इसकी सहयता से बने हुए डिटर्जेंट को और भी बारीक़ बनाया जाता है.
  • सीलिंग मशीन : इसकी सहयता से पैकेट्स को सील किया जाता है.
डिटर्जेंट पाउडर बनाने के लिए मशीनरी में कुल खर्च (Detergent Powder Making Machine Price)
इसके लिए रू 45,000 से लेकर रू 3,00,000 तक के मशीन उपलब्ध हैं. यदि आप 45000 के रेंज का डिटर्जेंट मेकिंग मशीन लेते हैं, तो उससे आप डिटर्जेंट पाउडर बना तो लेंगे किन्तु, पैकेजिंग के दौरान आपको मशीन की सुविधा नहीं मिल पाएगी. 75000 के मशीन के साथ आपको अलग से एक सीलिंग मशीन दिया जाता है और 3,00,000 रू की मशीन में पूरा सेट मिल जाता है, जिसमे मिक्सर से सीलिंग तक सभी तरह की मशीन उपलब्ध हो जाती है.
डिटर्जेंट पाउडर बनाने के लिए मशीन कहाँ से ख़रीदें (Detergent Powder Making Machine)
डिटर्जेंट पाउडर बनाने के लिए उपयोग में आने वाली मशीन को आप ऑनलाइन माध्यम से निम्न वेबसाईट से खरीद सकते हैं.
डिटर्जेंट पाउडर बनाने के व्यापार स्थापित करने के लिए कुल खर्च (Detergent Powder Making Business Cost)
व्यापार स्थापित करने के लिए कुल खर्च कम से कम 5 लाख रूपए का आता है. ये आंकड़ा आपके मशीन की कीमतों पर भी निर्भर करता है. यदि आप मशीन कम क़ीमत की जैसे 75000 रू के आस पास की लेते हैं, तो ये आंकड़ा 2.5 से 3 लाख का हो जाता है,.
डिटर्जेंट पाउडर बनाने की प्रक्रिया (Detergent Powder Making Process)
इसे बनाने की प्रक्रिया नीचे दी जा रही है.
  1. सबसे पहले एसिड स्लरी लें और इसमें एओएस डालें. इसके बाद इसमें डी कोल डालें.
  2. डी कोल डालने की वजह इसके निर्माण में इस्तेमाल किये गये रसायनों का नकारात्मक प्रभाव कम करना है.
  3. इसके बाद इसमें cbs x डाला जाता है. इस तीनों को एक साथ कंटेनर में अच्छे से मिलाएं. इसमें cbs- x अच्छे से मिलाना होता है.
  4. इसके बाद सारे पाउडर फॉर्म डालने के लिए मिक्सर मशीन का प्रयोग करें. इस मिक्सर मशीन में 35 किलो ग्लौबेर साल्ट, 5 किलो सोडा ऐश, 5 किलो डोलोमाइट, ट्राई सोडियम फॉस्फेट, कलर साल्ट डाल के मिलाएं. इस मिक्सर को डायरेक्ट और रिवर्स दोनों तरह से चलायें ताकि तीनों सही से मिक्स हो सके.
  5. इसके बाद इसमें कलर साल्ट, व्हाइटनर और परफ्यूम डालें. कलर साल्ट डालने से डिटर्जेंट का रंग आकर्षक और परफ्यूम से इसमें सुगंध आ जाती है.
  6. इसके बाद इसी मशीन में पहले से बनाए गये एसिड स्लरी घोल को डालें. इसी समय इसमें सोडियम ट्राई पोली फॉस्फेट और कार्बोक्ज़ी मिथाइल सेल्युलोस भी मिश्रित करें.
  7. एक बार सारे रसायन अच्छे से मिक्स हो जाने के बाद इसे 12 घंटे के लिए सूखने को छोड़ दें. जब ये पूरी तरह सूख जायेंगा तो आप पायेंगे कि ये मोटा यानि ढेले जैसा हो गया है. इसे बारीक करने के लिए आप स्क्रीमिंग मशीन की सहयता लें और उसमे इसे डाल कर बारीक बना लें.
  8. इस तरह आपका डिटर्जेंट बन कर तैयार हो जाता है और आप इसे बाज़ार के लिए पैक भी कर सकते हैं,.
डिटर्जेंट पाउडर की पैकेजिंग (Detergent Powder Packaging) 
पैकेजिंग के लिए अपने ब्रांड का पैकेट इस्तेमाल करें. यदि आपको किसी कंपनी से पहले से काम मिला हुआ है, तो आपको उसी कम्पनी के ब्रांड का पैकेट इस्तेमाल करना होगा. अन्यतः आप अपना ब्रांड्स इस्तेमाल कर सकते हैं. पैकेजिंग के लिए निम्न बातों पर ध्यान दें.
  • पैकेजिंग करने के पहले इस बात का ख्याल रखें कि एक पैकेट में कितना डिटर्जेंट पाउडर देना है. आप एक किलो का पैकेट बना रहे हैं या आधे किलो का इसका ध्यान रखना ज़रूरी है.
  • अपने ब्रांड को प्रमोट करने के लिए आकर्षक पैकेट बनाएं. पैकेट पर नीम्बू आदि की तस्वीर हो तो और भी बेहतर है.
  • पैकेजिंग करने के लिए ‘सीलिंग मशीन’ का इस्तेमाल करें. इस मशीन से पैकेट बहुत अच्छे से बनता है और देखने में आकर्षक लगता है.
डिटर्जेंट पाउडर बनाने के व्यापार के लिए लाइसेंस (Detergent Powder Making Business License)
डिटर्जेंट पाउडर बनाने के लिए आपको अपने फर्म को एलएलपी, ओपीसी आदि के अंतर्गत पंजीकृत कराना पड़ता है. आपके फर्म का एक बैंक अकाउंट होना बहुत ज़रूरी है. इसके साथ पोल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड की तरफ से भी ‘कंसेंट टू एस्टब्लिश’ और ‘कंसेंट टू ऑपरेट’ दोनों तरह के लाइसेंस प्राप्त करने की आवाश्यक्ता होती है. क्वालिटी कण्ट्रोल के लिए बीआईएस रजिस्ट्रेशन करवाना होता है. आपको अपने ब्रांड अथवा ट्रेडमार्क का भी रजिस्ट्रेशन करवाना होता है.
डिटर्जेंट पाउडर बनाने के व्यापार की मार्केटिंग (Detergent Powder Making Business Marketing)
मार्केटिंग के लिए आप रिटेल और होलसेल दोनों तरह के मार्केट का इस्तेमाल कर सकते हैं. आप अपने मार्केटिंग स्ट्रेटेजी में उन सभी दुकानों को ला सकते हैं, जो रिटेल में सामान बेचते हैं. इस तरह के दुकानों में अपना बनाया सामान बेचने पर लाभ अधिक होता है. इसके अलावा आप होलसेल के तहत बड़े दुकानों को भी डिटर्जेंट बेच देते हैं, जहाँ से रिटेलर अक्सर अपने दूकान के लिए खरीदते हैं. ब्रांड के प्रचार के लिये होर्डिंग वैगेरह का इस्तेमाल कर सकते हैं. यदि आप शुरू में अपने प्रोडक्ट पर किसी तरह का ऑफर दें तो वो भी कारगर होगा.
इस तरह से आप 4 से 5 लाख के अन्दर एक ऐसा व्यापार स्थापित कर सकते हैं, जो लॉन्ग टर्म बिज़नस साबित हो सकता है और आपको लम्बे समय तक भरपूर लाभ दे सकता है.

खुटाघाट बांध,बिलासपुर (Khuta Ghat,Bilaspur)

खुटाघाट बांध,बिलासपुर (Khuta Ghat,Bilaspur) 

छत्तीसगढ़ के पूरे क्षेत्र में धान का कटोरा 'या' राइस ऑफ बाउल इसका क्रेडिट छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले को दिया जाता है। इस जिले की अनूठी विशेषताओं में चावल, कोसा उद्योग और अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि कोर्स की गुणवत्ता परिष्कृत के कारण यह बहोत ही प्रसिद्ध हैं। 400 साल की उम्र के आसपास, बिलासपुर के शहर से देश भर में अपनी आकर्षक पर्यटन स्थलों और स्मारकों और पवित्र स्थानों का भंडार शामिल हैं, जो यात्रियों को आकर्षित बहोत करती है। इनमें से भारत के छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले मे खुटाघाट बांध व्यापक रूप से अपनी सुंदरता और आगंतुकों के लिए उत्कृष्ट मनोरंजन के अवसरों की पेशकश के लिए प्रशंसित है।

गर आप खुटाघाट बांध का भ्रमण करते है तो आप इसके बेदाग सुंदरता से मुग्ध हो जाएगा। और आसपास के जंगल और पहाड़ियों इस बांध के लिए एक अतिरिक्त आकर्षण का बढ़ावा है। और यह एक सुंदर पिकनिक स्थल है जहा हर साल हजारो पर्यटक आते है इस सुंदर दृश्य का दर्शन करने। खूंटाघाट नाम की एक कहानीजब बांध बना डूबन के जंगल को काटा नहीं गया । तब जंगल या लकड़ी की कीमत न थी । पानी में बाद इसके ठूंठ या जिसे खूंटा कहते वो पानी में बचे रह गये । ये मछली पकड़ने गयी नाव से टकराते ।कालान्तर में इसलिए इसे खूंटाघाट कहा गया । इनमें आखिरी पेड़ तेंदू के थे । उनके बीच तेंदूसार सुंदर काला था । जब जब बांध सूखता लोग इसको कटते तो मजबूत इतना की कुल्हाड़ी को झटका लगता। इसकी सुंदर मजबूत छड़ी बनती । आसपास के गाँव के सम्पन्न जन इस काली छड़ी में चांदी या पीतल की मूठ लगा कर शान से आज भी रखें हैं । कैसे पहुचे बिलासपुर से आप आसानी से बिलासपुर-अंबिकापुर हाईवे से होते हुए खूटाघाट पहुंच सकते है|

कोरोना वायरस के क्या हैं लक्षण और कैसे कर सकते हैं बचाव

दुनिया भर में कोरोना वायरस से अब तक तीन लाख सेज़्यादालोगों की जान जा चुकी है. साथ ही संक्रमण के मामले भी बढ़कर44 लाख 43 हज़ार से ज़्यादा हो गए हैं.

इस वायरस से संक्रमित मरीज़ों में ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भी शामिल थे, लेकिन इलाज के बाद वो ठीक हो चुके हैं और अब काम पर लौट गए हैं.
हम आपको यहां बता रहे हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण कैसे फैलता है और इससे बचने के लिए आप क्या-क्या कर सकते हैं.
कोरोना वायरस आपके फेफड़ों को संक्रमित करता है. इसके दो मूल लक्षण होते हैं बुख़ार और सूखी खांसी. कई बार इसके कारण व्यक्ति को सांस लेने में भी दिक्कत पेश आती है.
कोरोना के कारण होने वाली खांसी आम खांसी नहीं होती. इस कारण लगातार खांसी हो सकती है यानी आपको एक घंटे या फिर उससे अधिक वक्त तक लगातार खांसी हो सकती है और 24 घंटों के भीतर कम से कम तीन बार इस तरह के दौरे पड़ सकते हैं. लेकिन अगर आपको खांसी में बलग़म आता है तो ये चिंता की बात हो सकती है.
इस वायरस के कारण शरीर का तापमान 37.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है जिस कारण व्यक्ति का शरीर गर्म हो सकता है और उसे ठंडी महसूस हो सकती है. व्यक्ति को शरीर में कंपकंपी भी महसूस हो सकती है.
इसके कारण गले में खराश, सिरदर्द और डाएरिया भी हो सकता है. हाल में आए एक ताज़ा शोध के अनुसार कुछ खाने पर स्वाद महसूस न होना और किसी चीज़ की गंध का महसूस न होना भी कोरोना वायरस का लक्षण हो सकता है.
माना जा रहा है कोरोना वायरस के लक्षण दिखना शुरु होने में औसतन पांच दिन का वक्त लग सकता है लेकिन कुछ लोगों में ये वक्त कम भी हो सकता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार वायरस के शरीर में पहुंचने और लक्षण दिखने के बीच 14 दिनों तक का समय हो सकता है.

कब होती है अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत?

जिन लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण है उनमें से अधिकतर लोग आराम करने और पैरासिटामॉल जैसी दर्द कम करने की दवा लेने से ठीक हो सकते हैं.
अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत तब होती है जब व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत आनी शुरू हो जाए. मरीज़ के फेफड़ों की जांच कर डॉक्टर इस बात का पता लगाते हैं कि संक्रमण कितना बढ़ा है और क्या मरीज़ को ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की ज़रूरत है.
लेकिन इसमें मरीज़ को अस्पताल के आपात विभाग यानी ऐक्सीडंट ऐंड इमर्जेंसी में भर्ती होने की ज़रूरत नहीं होती.
भारत में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की वेबसाइट पर कोरोना संक्रमण से जुड़ी हर जानकारी दी गई है. ब्रितानी नागरिक एनएचएस111 की वेबसाइट पर कोरोना से जुड़ी सभी जानकारी ले सकते हैं.
अगर मरीज़ को सांस लेने में काफी परेशानी हो रही है तो वो भारत सरकार के हेल्पलाइन नंबर +91-11-23978046 या फिर 24 घंटों चलने वाले टोल फ्री नंबर 1075 पर संपर्क कर सकते हैं. देश के विभिन्न राज्यों ने भी नागरिकों के लिए हेल्पलाइन शुरु किए हैं जहां ज़रूरत पड़ने पर फ़ोन किया जा सकता है.
वहीं ब्रिटेन में इमर्जेंसी की स्थिति में व्यक्ति 999 नंबर पर संपर्क कर सकते हैं.

इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) में क्या होता है?

इंटेंसिव केयर यूनिट अस्पताल के ख़ास वार्ड होते हैं जहां गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों को रखा जाता है.
यहां कोरोना वायरस के मरीज़ों के ऑक्सीजन की ज़रूरत को मुंह पर ऑक्सीजन मास्क लगा कर या फिर नाक में ट्यूब के ज़रिए पूरा किया जाता है.
जो लोग गंभीर रूप से बीमार हैं उन्हं वेंटिलेटर पर रखा जाता है. यहां सीधे फेफड़ों तक ऑक्सीजन की अधिक सप्लाई पहुंचाई जाती है. इसके लिए मरीज़ के मुंह में ट्यूब लगाया जाता है या फिर नाक या गले में चीरा लगा कर वहां से फेफड़ों में ऑक्सीजन दिया जाता है.

कितना घातक है कोरोना वायरस?

कोरोना वायरस के संक्रमण के आँकड़ों की तुलना में मरने वालों की संख्या को देखा जाए तो ये बेहद कम हैं. हालांकि इन आंकड़ों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता, लेकिन आंकड़ों की मानें तो संक्रमण होने पर मृत्यु की दर केवल एक से दो फ़ीसदी हो सकती है.
फ़िलहाल कई देशों में इससे संक्रमित हज़ारों लोगों का इलाज चल रहा है और मरने वालों का आँकड़ा बढ़ भी सकता है.
56,000 संक्रमित लोगों के बारे में एकत्र की गई जानकारी आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक अध्ययन बताता है कि -
  • 6 फ़ीसदी लोग इस वायरस के कारण गंभीर रूप से बीमार हुए. इनमें फेफड़े फेल होना, सेप्टिक शॉक, ऑर्गन फेल होना और मौत का जोखिम था.
  • 14 फ़ीसदी लोगों में संक्रमण के गंभीर लक्षण देखे गए. इनमें सांस लेने में दिक्क़त और जल्दी-जल्दी सांस लेने जैसी समस्या हुई.
  • 80 फ़ीसदी लोगों में संक्रमण के मामूली लक्षण देखे गए, जैसे बुखार और खांसी. कइयों में इसके कारण निमोनिया भी देखा गया.
  • रोना वायरस संक्रमण के कारण बूढ़ों और पहले से ही सांस की बीमारी (अस्थमा) से परेशान लोगों, मधुमेह और हृदय रोग जैसी परेशानियों का सामना करने वालों के गंभीर रूप से बीमार होने की आशंका अधिक होती है.
    कोरोना वायरस का इलाज इस बात पर आधारित होता है कि मरीज़ के शरीर को सांस लेने में मदद की जाए और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाए ताकि व्यक्ति का शरीर ख़ुद वायरस से लड़ने में सक्षम हो जाए.
    कोरोना वायरस का टीका बनाने का काम अभी चल रहा है.
    अगर आप किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो आपको कुछ दिनों के लिए ख़ुद को दूसरों से दूर रहने की सलाह दी जा सकती है.
    पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड ने कहा है कि जिन्हें लगता है कि वो संक्रमित हैं वो डॉक्टर, फार्मेसी या अस्पताल जाने से बचें और अपने इलाक़े में मौजूद स्वास्थ्य कर्मी से फ़ोन पर या ऑनलाइन जानकारी लें.
    विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी लोगों के लिए एहतियात बरतने के तरीक़ों के बारे में जानकारी जारी की है.
    संक्रमण के लक्षण दिखने पर व्यक्ति को अपने स्थानीय स्वास्थ्य सेवा अधिकारी या कर्मचारी से संपर्क करना चाहिए. जो लोग बीते दिनों कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हैं उनकी जांच की जाएगी.
    अस्पताल पहुंचने वाले सभी मरीज़ जिनमें फ्लू (सर्दी ज़ुकाम और सांस लेने में तकलीफ) के लक्षण हैं, स्वास्थ्य सेवा अधिकारी उनका परीक्षण करेंगे.
    परीक्षण के नतीजे आने तक आपको इंतज़ार करने और दूसरों से खुद को दूर रखने के लिए कहा जाएगा.