स्वयं सहायता समूह: महिला सशक्तिकरण का एक प्रमुख माध्यम - यूपीएससी, आईएएस, सिविल सेवा और राज्य पीसीएस परीक्षाओं के लिए समसामयिकी

चर्चा का कारण

हाल ही में भारत सरकार ने बजट 2019-20 में स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को बढ़ावा देने तथा देश की विकास प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए स्वयं सहायता समूह को दिए जाने वाले ब्याज सब्सिडी कार्यक्रमों का सभी जिलों में विस्तार करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही जनधन बैंक खाते वाले स्वयं सहायता समूह की प्रत्येक महिला एसएचजी सदस्य को 5000 रुपये तक की ओवरड्राफ्रट की सुविधा भी दी जाएगी।

परिचय

बांग्लादेश में 1970 के दशक के दौरान गरीब और समाज के निम्न तबके के लोगों के जीवन में आर्थिक समस्याओं के समाधान हेतु ‘स्वयं सहायता समूह’ की अवधारणा को ‘बांग्लादेश ग्रामीण बैंक’ के रूप में जीवंत रूप प्रदान करने वाले नोबल पुरस्कार विजेता प्रो. मोहम्मद यूनुस का योगदान अविस्मरणीय है। आज भी ‘स्वयं सहायता समूह’ बहुत प्रासंगिक है। इन समूहों के माध्यम से सभी सदस्य अपनी सामूहिक बचत निधि से जरूरतमंद सदस्य को न्यूनतम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करते हैं जिससे वह सदस्य स्थानीय आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से आजीविका उपार्जन हेतु अपनी उद्यमशीलता को आकार प्रदान करता है।
विकासशील देशों के लिए स्वयं सहायता समूह जमीनी-स्तर पर जनसामान्य के आर्थिक सशक्तिकरण का एक प्रमुख माध्यम है। वहीं दूसरी ओर इस अवधारणा को न केवल सामान्य लोगों द्वारा अपनाया जाता है बल्कि दुनिया भर की सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाएँ भी स्वयं सहायता समूह के महत्त्व को बखूबी समझती हैं।
भारत में आर्थिक उदारीकरण (1991-92) के दौरान स्वयं सहायता समूहों को विशेष प्रोत्साहन दिया गया तथा इस प्रक्रिया में नाबार्ड की भूमिका प्रमुख रही। वहीं भारत की नौंवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) के दौरान स्वयं सहायता समूहों को जमीनी-स्तर पर विकासात्मक योजनाओं के कार्यान्वयन में उपयोग में लाया गया।

स्वयं सहायता समूह का लक्ष्य

  • गरीब लोगों के बीच नेतृत्व क्षमता का विकास करना।
  • स्कूली शिक्षा में योगदान करना।
  • पोषण में सुधार करना।
  • जन्म दर में नियंत्रण करना।
कई स्वयं सहायता समूह नाबार्ड की सेल्फ हेल्प ग्रुप्स बैंक लिंकेज (Self Help Groups Bank Linkage) कार्यक्रम की तरह बैंकों से उधार लेते हैं, इस मॉडल ने सेवाओं को गरीब जनसंख्या तक पहुँचाने का कार्य किया है।
नाबार्ड का अनुमान है कि भारत में 2.2 मिलियन स्वयं सहायता समूह है, जो 33 मिलियन सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सेल्फ हेल्प ग्रुप्स बैंक लिंकेज कार्यक्रम कुछ राज्य में भी शुरू किया गया है, जैसे- आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक।

स्वयं सहायता समूहों का ग्रामीण भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान

  • सामाजिक उद्यमिता को प्रोत्साहन देने में सहायक।
  • लोगों में उद्यमशीलता, प्रबंधकीय गुणों जैसे नेतृत्व व निर्णय लेने की क्षमता इत्यादि का विकास।
  • आर्थिक गतिविधियों द्वारा मूल्यवर्द्धक वस्तुओं का उत्पादन।
  • नवाचार एवं रचनात्मक उद्योगों (क्रिएटिव इंडस्ट्रीज) को प्रोत्साहन।
  • रोजगार, स्वरोजगार व उद्यमिता से गरीबी उन्मूलन में सहायक।
  • विभिन्न संसाधनों (मानव, वित्तीय, प्राकृतिक एवं अन्य) के समुचित उपयोग से स्थानीय माँगों के अनुरूप वस्तुओं/सेवाओं के उत्पादन से स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करना।
  • महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा उत्पादित विभिन्न खाद्य पदार्थों जैसे अचार, पापड़, बड़ी, दलिया, आटा, अगरबत्ती, मुरब्बा इत्यादि की सुगम उपलब्धता से महिलाओं व बच्चों के पोषण तथा विकास में महत्वपूर्ण योगदान।
  • ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में होने वाले पलायन को रोकने में सहायक।
  • स्वैच्छिक बचत और वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहन।
  • श्रम-आधारित नए रोजगार सृजन करने वाले क्षेत्रों को बढ़ावा।
  • क्षेत्रीय आर्थिक व सामाजिक असमानता को कम करने में सहायक।
भारत के विभिन्न राज्यों जैसे- छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना इत्यादि में महिला स्वयं सहायता समूह विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।

लाभ

  • विगत कुछ वर्षों में देखा जाए तो इसमें महिलाएँ बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं जिससे समाज में उनकी स्थिति में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है।
  • स्वयं सहायता समूहों के सदस्य अपने नियमित बचत से एक कोष बना लेते हैं और उस कोष का उपयोग आपातकालीन स्थिति में अपने सामूहिक उद्देश्य के कार्य हेतु करते हैं।
  • स्वयं सहायता समूह अपने कोष के पैसे से ग्रामीण आधारित सूक्ष्म या लघु उद्योग की शुरूआत भी करते हैं जिससे रोजगार के नये अवसर सृजित होते हैं।
  • इन समूहों में से ही किसी को नेतृत्व दे दिया जाता है जो सारे प्रबंधन का कार्य करता है।
  • इन समूहों को बैंकों द्वारा धन दिया जाता है, जिससे वित्तीय लेन-देन में आसानी होती है।
  • स्वयं सहायता समूहों के निर्माण होने से दूसरे संस्थानों पर वित्तीय निर्भरता कम हो जाती है।

चुनौतियाँ

  • ज्ञान की कमीः ग्रामीण स्तर पर देखें तो लोगों में इसके प्रति जागरूकता की कमी है क्योंकि स्वयं सहायता समूहों में काम करने वाले लोग अधिकतर अशिक्षित होते हैं।
  • बैंकिंग सुविधाओं का अभावः भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं की अगर बात करें तो 6 लाख गाँव में केवल 1.2 लाख बैंकिंग शाखाएँ हैं जो कि औसत से भी कम है। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक स्वयं सहायता समूहों को वित्तीय सेवाएँ जल्दी प्रदान करने को तैयार नहीं होते हैं।
  • भारत में खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पितृसत्तात्मक मानसिकता का होना, जो कि स्वयं सहायता समूहों में महिलाओं की भागीदारी को हतोत्साहित करते हैं।
  • स्थायित्व तथा सुरक्षाः स्वयं सहायता समूहों के स्थायित्व और उनकी गुणवत्ता का विषय हमेशा से मुख्य मुद्दा रहा है साथ ही इनकी सुरक्षा का दायित्व कौन ले इस पर समूहों के सदस्यों के पास कोई जवाब नहीं है।
  • स्वयं सहायता समूह केवल सूक्ष्म वित्त और सूक्ष्म उद्यमिता को बढ़ाने में सक्षम है जो उनके आर्थिक संसाधनों को सीमित करते हैं।
  • स्वयं सहायता समूह के कार्य आज भी प्राथमिक क्षेत्र से संबंधित हैं जो इनके निम्न कौशल को दर्शाते हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में योग्य लोगों की कमी है। योग्यता की कमी होने के कारण इन स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को प्रशिक्षण ठीक से नहीं मिल पाता, इसके अलावा क्षमता निर्माण और कौशल प्रशिक्षण के लिए संस्थागत तंत्र का अभाव है।
  • स्वयं सहायता समूह, गैर सरकारी संस्थाओं और सरकारी एजेंसियों पर बहुत अधिक निर्भर है, जैसे ही इन संस्थाओं द्वारा अपना समर्थन वापस लिया जाता है वैसे ही इनका पतन हो जाता है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की कमी होने के कारण, स्वयं सहायता समूहों के द्वारा तैयार माल को बाजार तक पहुँचाने में कठिनाई होती है।

सरकारी प्रयास

वित्तमंत्री ने अपने बजट 2019-20 में महिलाओं के लिए ‘नारी तू नारायणी/महिला’ के लिए कई घोषणाएँ की हैं, जिसे निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है-
  • महिला नेतृत्व पहलों और आन्दोलनों के लिए महिला केन्द्रित नीति निर्माण के दृष्टिकोण में बदलाव।
  • बजट 2019-20 में लैंगिक भेदभाव को दूर करने के लिए सरकारी और निजी हित धारकों के साथ एक समिति प्रस्तावित की गयी है।
  • महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के साथ ही मुद्रा योजना के तहत महिलाओं को सस्ता लोन देने का ऐलान किया गया है। महिला उद्यमियों को अब एक लाऽ रुपये तक का लोन दिया जाएगा।
  • साथ ही जन धन खाते वाले प्रत्येक सत्यापित महिला एसएचजी (सेल्फ हेल्प ग्रुप) सदस्य को 5000 रुपये के ओवरड्राफ्रट की अनुमति दी गई है।
  • इसके अतिरिक्त स्टैंड अप इंडिया स्कीम के तहत महिलाओं, SC/ST उद्यमियों को लाभ दिये जाने का प्रावधान किया गया है।
दीनदयाल अंत्योदय योजनाः राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन डीएवाई-एनआरएलएम गरीब ग्रामीण महिलाओं को स्वावलंबी बनाने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रहा है। यह मिशन भारत सरकार की ग्रामीण गरीबी दूर करने की प्रमुख योजना है। 2011 में स्थापित इस मिशन का मार्च 2018 तक 29 राज्यों और 5 संघशासित प्रदेशों के 584 जिलों के 4456 ब्लॉकों में प्रसार हो चुका है। यह मिशन ग्रामीण महिलाओं को कृषि एवं गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों में आजीविका अपनाने में मदद कर रहा है। मिशन के तहत स्टार्ट अप ग्रामीण उद्यमिता कार्यक्रम (एसवीईपी), आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना (एजीईवाई) जैसी उपयोजनाओं के सफल कार्यान्वयन से ग्रामीण महिलाओं की उद्यमिता क्षमता सामने आई है।
दीनदयाल अंत्योदय राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम) के अंतर्गत महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए बैंक ऋण पर बल दिया जा रहा है ताकि उद्यम को बढ़ावा मिले। बैंकों द्वारा प्राप्त ऋण के माध्यम से कस्टम हायरिंग सेंटर, ग्रामीण परिवहन, कृषि तथा संबंधित कार्य, पशुपालन, बागवानी, हथकरघा तथा हस्तशिल्प, खुदरा व्यापार आदि जैसे उपयोगी उद्यमों को बढ़ावा देने में किया जा रहा है। पिछले 5 वर्ष में महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए बैंक संपर्क दो गुना से अधिक हो गया है।

कौशल विकास से बढ़े रोजगार के अवसर

कौशल विकास के तहत अब तक 56 लाख से ज्यादा युवा प्रशिक्षित किए जा चुके हैं जिनमें से करीब 24 लाख अपने हुनर से जुड़े क्षेत्र में रोजगार पा चुके हैं। दरअसल देश में पहली बार भारत सरकार ने स्किल डेवलपमेंट को लेकर एक समग्र और राष्ट्रीय नीति तैयार की। इसके लिए 21 मंत्रालयों और 50 विभागों में फैले कौशल विकास के कार्य को विशेष तौर पर गठित हुए कौशल विकास मंत्रलय के अधीन लाया गया है। 12,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ शुरू हुई उद्यमिता और कौशल विकास पहलों के संस्थानीकरण के प्रयास के रूप में नाबार्ड विशिष्ट संस्थाओं को सहायता प्रदान करता है, जो विभिन्न कौशलों पर आधारित ग्रामीण युवकों और महिलाओं को उद्यमिता विकास और प्रशिक्षण प्रदान करते हैं जिससे उन्हें आजीविका के लिए बेहतर विकल्प प्राप्त होते हैं।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना से युवाओं को उद्योग से संबंधित दक्षता का प्रशिक्षण और अपनी रोजगारपरकता में सुधार करने का मौका मिल रहा है। युवा वर्ग श्रम बाजार में प्रतिस्पर्द्धा के लिए तैयार हो सके, इसके लिए सरकार ने विभिन्न प्रकार के दक्षता कार्यक्रम उपलब्ध कराए हैं, जैसे दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, राष्ट्रीय शहरी जीविकोपार्जन मिशन और राष्ट्रीय ग्रामीण जीविकोपार्जन मिशन इत्यादि।

मुद्रा योजना से बढ़े स्वरोजगार के अवसर

मुद्रा योजना के तहत अगस्त 2018 तक 8.19 करोड़ लोगों ने ऋण लिया है। यदि कम से कम एक व्यक्ति को रोजगार मिलने का भी औसत मान लिया जाए तो 8-19 करोड़ लोगों को रोजगार मिला है। इस योजना के तहत अब तक 3.24 लाख करोड़ रुपये वितरित किए जा चुके हैं जिनमें ज्यादातर लघु उद्यमी हैं। इनमें से बड़ी संख्या उन लोगों की है जो इससे पहले किसी भी प्रकार के व्यवसाय से नहीं जुड़े थे। मुद्रा ऋण 10 लाख रुपये तक के गैर-कृषि कार्यकलापों के लिए उपलब्ध है।
मुद्रा योजना महिला सशक्तिकरण का भी एक बेहतरीन उदाहरण है। इस योजना के तहत 30 अगस्त 2018 तक 86,37,823 लोग लाभ ले चुके हैं, इनमें 70 प्रतिशत महिलाएँ हैं यानी लगभग छह करोड़ से अधिक महिलाओं ने इसका लाभ उठाया है।

स्टैंडअप इंडिया

इस योजना से देशभर में रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत 10 लाख रुपये से 100 लाख रुपये तक की सीमा में ट्टणों के लिए अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के बीच उद्यमशीलता को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। हर बैंक को कहा गया है कि वह यह सुनिश्चित करे कि दलित, पिछड़े और महिलाओं को खोज कर इस स्कीम से उन्हें जोड़ें। इन योजनाओं के माध्यम से सरकार ने कुटीर उद्योग को बेहतर बनाने की कोशिश की है। कुटीर उद्योग के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी बैंक या जिला उद्योग केन्द्र से भी संपर्क कर सकते हैं।

राष्ट्रीय ग्रामीण जीविकोपार्जन मिशन (एनआरएलएम)

इस कार्यक्रम में विश्व बैंक ने निवेश किया है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब वर्गों को दक्ष और प्रभावशाली संस्थागत मंच प्रदान करना और स्थायी जीविकोपार्जन में वृद्धि और वित्तीय सेवाओं की उपलब्धता में सुधार करना है, लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि दक्षता विकास में सतत निवेश किया जाए और उद्यमशीलता के जरिए उत्कृष्ट रोजगार सृजन के अवसरों को बढ़ाया जाए। भारत में कौशल की कमी को दूर करने और रोजगारपरकता को बढ़ाने के लिए ऐसी नीतियाँ और रणनीतियाँ बनाई जानी चाहिए जो श्रम प्रासंगिक शिक्षा प्रणालियों, कैरियर मार्गदर्शन, जीवन कौशल और तकनीकी-व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण योजनाओं तथा औपचारिक एवं अनौपचारिक क्षेत्र में ‘ऑन द जॉब’ प्रशिक्षण पर केंद्रित हों।

निष्कर्ष

भारतीय अर्थव्यवस्था में दहाई की गति प्राप्त करना तथा निरंतरता बनाए रखना बहुत ही महत्त्वाकांक्षी प्रतीत होता है, आज के बदलते भारत में आवश्यकता है कि विभिन्न महत्वपूर्ण चुनौतियों, जैसे सभी राज्यों में संतुलित समान आर्थिक विकास, सामाजिक सद्भाव, आगामी पीढि़यों के मद्देनजर मानव-हित में पर्यावरणीय संरक्षण एवं संतुलन बनाते हुए 2030 तक समावेशी एवं सतत विकास के लक्ष्यों को समयबद्ध रूप से रणनीतिक तौर पर प्राप्त किया जाये। दूसरी ओर, निजी क्षेत्र, गैर-सरकारी संस्थाएँ एवं स्वयं सहायता समूह अपने एकीकृत प्रयास से ग्रामीण भारत की विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य समस्याओं का समाधान एवं प्रबंधन के बेहतर तरीके सहायक हो रहे हैं।
उपरोक्त सभी पहलुओं पर गौर करने और समझने के बाद यह कहा जा सकता है कि ग्रामीण भारत के सामजिक-आर्थिक विकास में गैर-सरकारी संस्थाओं, स्वयं सहायता समूहों एवं निजी क्षेत्र की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ये सभी संस्थाएँ अपनी विभिन्न सामाजिक गतिविधियों और कार्यों से नए भारत के निर्माण में तथा विभिन्न सामाजिक विषमताओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी, भेदभाव, भ्रष्टाचार एवं महिला एवं बाल उत्पीड़न इत्यादि को जन आंदोलन एवं भागीदारी से दूर करने में सरकार व समाज को अपना बहुमूल्य योगदान दे सकती हैं।

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